इंसान की असली पहचान उसके कर्मों से होती है | कोसारे महाराज
सच्चे इंसान की पहचान उनके आचरण, नैतिकता, ईमानदारी, समर्पण, और संवाद में दिखती है। वे दूसरों के साथ सहयोगी और उदार होते हैं और बुराई से बचने के लिए प्रयासरत रहते हैं। सच्चे इंसान कार्यों में और विचारों में भी सहयोगी और निष्कल्प दिखते हैं, और वे अपने वादिता को पूरा करने के लिए प्रतिबद्ध होते हैं।
इंसानों की पहचान कैसे की जाती है :
इंसान की असल पहचान जब होती है जब आप परेशानी में हो ओर कोई आपके काम आता है तो आप उसको पहचान जाते है की यह अपना है। मनुष्य की पहचान उसके कर्मों से होती है। किसी भी व्यक्ति की पहचान उसके कर्मो से होती है न की उसके कुल से। यदि नीच कर्म करता है तो उसे ऊंचा नहीं माना जा सकता। वह नीच ही कहलाता है । जिस प्रकार सोने के बने कलश में यदि शराब भर देने से शराब का महत्व बढ़ नहीं जाता तथा उसकी प्रकृति नहीं बदलती। उसी प्रकार श्रेष्ठ कुल में जन्म लेने मात्र से किसी व्यक्ति के गुण निर्धारित नहीं किया जा सकता। मनुष्य के गुणों की पहचान उनके कर्म से होती हैं। व्यक्ति अपने कर्मों से ऊंचा बनता है। किसी भी कुल में जन्मा व्यक्ति यदि पवित्र कर्म तथा सत्कर्म करता है तो वह ऊंचा व महान बनता है।
कर्म और क्रिया में क्या अंतर है :
अगर हम इन्हें सही तरीके से समझ लें तो यह हमारे जीवन का एक आदर्श और बेहद सटीक स्टीयरिंग व्हील बन सकता है। क्रिया सहज क्रिया की अवस्था है। प्रवाह की अवस्था. कर्म, क्या यह बिल्कुल विपरीत है - क्रिया जो आपको बांधती है।
हर एक कर्म, चाहे वह छोटा हो या बड़ा, दुनिया में फर्क डालता है। प्रत्येक कर्म या क्रिया की एक निश्चित प्रतिक्रिया होती है। हम अपने जीवन में जो छोटे-छोटे कर्म करते हैं जैसे योग आसन, प्राणायाम, व्यायाम, अपने घर में कोई सफाई का काम हो या शरीर की सफाई हो समाज सेवा हो या राजनितिक कार्य हो नेतागिरी हो आदि, उन्हें योगिक अवधारणा में "क्रिया" के रूप में मान्यता दी गई है।
कई सज्जन इंसानो ने क्रिया और कर्म को एक ही बात को बताया गया है। लेकिन वास्तव में ये सच नहीं है. कर्म और क्रिया के बीच मुख्य अंतर यह है कि क्रिया तुरंत या कुछ दिनों या महीनों में परिणाम देती है। मान लीजिए कि आप जल नेति जैसी शतकक्रिया (योगिक सफाई तकनीक) का अभ्यास करते हैं। इसलिए जल नेति का परिणाम कुछ दिनों या महीनों में आ जाता है। लेकिन अगर आप अच्छे कर्म के तौर पर किसी को पैसे दान करते हैं तो इसका परिणाम कब मिलेगा यह कोई नहीं जानता।
सम्मान कैसे अर्जित किया जाता है :
सम्मान मानवीय संपर्क का एक मूलभूत पहलू है, एक अदृश्य मुद्रा जिसका हमारे समाज में अत्यधिक मूल्य है। यह हमें स्वचालित रूप से प्रदान नहीं किया गया है; बल्कि, यह हमारे कार्यों, शब्दों और व्यवहार के माध्यम से अर्जित किया जाता है। यदि कोई आपका सम्मान करता है, तो यह आपके चरित्र, मूल्यों और ईमानदारी को दर्शाता है।
हमारी प्रतिभा और हमारा ज्ञान ही हमारा कुल और गोत्र है। तुम जहां भी जाओगे वहां तुम्हें प्रतिष्ठा और मान-सम्मान अवश्य मिलेगा। तुम लोगों की सेवा करोगे उन्हे कष्टों से मुक्त करोगे इसी से तुम्हारी पहचान बनेगी और तुम जगत मे विख्यात हो जाऔगे। क्योंकि कर्म से ही मनुष्य की पहचान होती है वही उसे महान बनाता है कुल और गोत्र नहीं। इसलिये प्रत्येक व्यक्ति को जात-पात को छोड़कर कर्मों को महान बनाना चाहिये क्योकि कर्म ही मानव को उच्च शिखर तक ले जाते हे जिससे व्यक्ति महान बनता हे और उसे प्रतिष्ठा मिलती है।
सबसे अच्छा कर्म क्या है :
उठना, बैठना, चलना, खाना, सोचना सब कर्म ही है।
मनुष्य की असली पहचान उसके कर्मों से होती है मनुष्य के कर्म महान होता है जन्म से नहीं . यह उद्धरण व्यक्ती के कर्मो के महत्व को विवेचन करता हैं . यह कहता हैं की असल में महानता और सफलता व्यक्ति के किए गए कर्मो के परिणाम होते हैं , न कि उसके जन्म से ही नहीं उसके कर्मो से परिणाम अच्छे होते हैं ।
इस उद्धरण के साथ, हमें यह अवगत होता है की समाज में सफलता प्राप्त करने के लिए महत्वपूर्ण हैं कि हम कैसे कर्म करते हैं। वयक्ति के कर्म ही उसके भविष्य का निर्माण करते हैं। अच्छे कर्म उसे समाज में स्थान बनाने में मदद करते हैं, जबकि बुरे कर्म उसे नकारात्मक परिणामों का सामना करना पड़ता हैं।
जन्म का स्तर, समाज, या परिवेश एक व्यक्ति की महानता को नहीं निर्धारित करता हैं। वास्तव में, महानता का अर्थ हैं अपने जीवन में कार्य करना और अपने कार्यो से समाज के लिए सकारात्मक परिणाम पैदा करना। इसलिए, यह उद्धरण हमें यह याद दिलाता हैं कि हमारे कर्म ही हमें वास्तविक महानता की उचाईयाँ तक पहुँचा सकते हैं।
कर्म का महत्व क्या है :
जीवन में कर्म का बहुत ज्यादा महत्व है, क्यों कर्म ही इंसान को आगे बढ़ने की क्षमता देती है, बिना कर्म किए कोई भी कभी भी आगे नहीं बढ़ सकता है, लेकिन हम हमेशा सुनते है कि सभी को अच्छे कर्म करने चाहिए लेकिन जाने अंजाने हम ऐसे कई काम करते हैं जो शायद अच्छे नहीं होते हैं लेकिन उसी वक्त या तो कुछ समय के बाद ही अगर हम ये समझ जाते हैं
कर्म की महत्वपूर्ण भूमिका के साथ, यह उद्धरण भी सामाजिक न्याय के सिद्धांत को भी प्रकट करता हैं। यह वयक्ति को उसके कार्यो के द्वारा मूल्यांकन करने का माध्यम प्रधान करता हैं, न कि उसके जाति, धर्म, या सामाजिक स्थिति के आधार पर।
इस उदाहरण को समझने के लिए, हमें इसे अनेक विवादित संदर्भ में विचार करने की आवश्यकता है. धर्म, सामाजिक संरचना, और व्यक्तिगत परिस्थितियाँ के माध्यम से, हम इस उदहारण के महत्व को समझ सकते हैं।
इस उदाहरण में, एक व्यक्ति जो नैतिक और दायित्वपूर्ण कार्य करता हैं , वह समाज में आदर्श बनता हैं. उसके व्यक्तित्व के अनुसार, उसके कर्मों के माध्यम से ही उसे महानता प्राप्त होती हैं।
इसके विपरीत, जन्म की भूमिका से जुड़े धार्मिक और सामाजिक विचार कई बार विवादित होते हैं। एक वयक्ति के जन्म के आधार पर उसे उसके समाज में किसी खास दर्जे या स्थिति का अधिकार नहीं होना चाहिए। वयक्ति के कर्मो के आधार पर ही उसे समाज में स्थान मिलना चाहिए।
समाज में न्याय की क्या भूमिका है :
न्याय का सार सबकी भलाई की प्राप्ति है । सामाजिक न्याय के अंतर्गत एक न्यायसंगत और निष्पक्ष सामाजिक व्यवस्था का निर्माण होता है और समुदाय के प्रत्येक सदस्य हेतु न्याय प्रदान करता है। समाज में असमानताओं को दूर करना और समाज के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक मामलों में सभी लोगों को समान अवसर देने की बातें आदि शामिल हैं।
समाज में न्याय और समर्थ कार्य को महत्व देने वाले वयक्ति को ही समाज में अधिकार मिलना चाहिए। इस उदहारण के माध्यम से, हम वयक्ति के उत्कृष्टता को उसके कर्मो और उसके आचरण के द्वारा मापने की आवश्यकता को समझते हैं, न कि उसके जन्म के आधार पर।
इस प्रकार, मनुष्य कर्म से महान होता हैं, जन्म से नहीं यह उदहारण एक गहरे सामाजिक, धार्मिक, और दार्शनिक सिद्धांत को प्रकट करता हैं, जो वयक्ति के सच्चे आत्मविश्वास और समाज में न्याय के प्रति आदर्शता को प्रोत्साहित करता हैं। मनुष्य कर्म से महान होता हैं, जन्म से नहीं।
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Kosare Maharaj
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