निजीकरण के फायदे और नुकसान क्या हैं
आजकल निजीकरण Privatization शब्द का शोर काफी सुनायी दे रहा है। क्योंकि सरकार द्वारा नियंत्रित अधिकतर कंपनियां निजीकरण की राह पर हैं। सरकार सभी क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर निजीकरण यानी सरकारी कंपनियों को बेचने पर जोर दे रही है। निजीकरण, यह एक ऐसा विषय है जिसके बारे में पिछले कुछ सालों में देश में काफी बहस हो रही है और सबसे ज्यादा विवाद रेलवे और बैंकों के निजीकरण को लेकर रहा है।
वैसे निजीकरण को लेकर लोगों के अपने-अपने तर्क हैं। कोई इसे सही बता रहा है तो कोई इसे गलत। नयी आर्थिक नीति के तहत साल 1991 मे भारतीय अर्थव्यवस्था Indian Economy में कई महत्वपूर्ण सुधार किये गए थे। भारतीय अर्थव्यवस्था को देश और विदेश के निजी क्षेत्र के व्यापारियों के लिए खोल दिया गया था।
निजीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमे क्षेत्र या उद्योग को सार्वजनिक क्षेत्र से निजी क्षेत्र में स्थानांतरित Shifting from Public Sector to Private Sector किया जाता है। यानि निजीकरण एक ऐसी आर्थिक प्रक्रिया है जिसके तहत सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम, औद्योगिक संस्थान और इकाइयों को निजी क्षेत्र मे स्थानांतरित किया जाता है।
यहाँ पर स्थानांतरित करने का अर्थ है कि स्वामित्व सरकार के हाथों से निकल कर निजी व्यक्तियों या समूहों के हाथ मे आ जाता है। निजीकरण से आशय ऐसी औद्योगिक इकाइयों को निजी क्षेत्र में हस्तांतरित किये जाने से है जो अभी तक सरकारी स्वामित्व एवं नियंत्रण government ownership and control में थी।
निजीकरण के उद्देश्य :
बेहतर दक्षता : राज्य-संचालित कंपनियां मुख्य रूप से आर्थिक कल्याण के बजाय राजनीतिक इरादों से प्रभावित होती हैं। यह सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों की दक्षता में बाधा डालता है और विकास को रोकता है। निजीकरण सरकारी प्रभाव को रोकता है और आर्थिक विकास में सहायता करता है।
निजीकरण के नुकसान :
निजी क्षेत्र की कंपनियों का लक्ष्य सिर्फ व्यापारिक लाभ कमाना होता है, इसलिए इस क्षेत्र में सामाजिक उद्देश्यों के प्रति उदासीनता नजर आती है। सरकार जनता के प्रति जवाबदेह भी होती है। इसलिए सार्वजनिक उद्योगों की सफलता और असफलता के लिए सरकार को जनता बाध्य कर सकती है।
निजीकरण के फायदे और नुकसान क्या हैं :
निजीकरण के कुछ लाभ हैं: राजस्व में वृद्धि, सरकारी उधार में कमी, प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा और दक्षता को बढ़ावा। निजीकरण के कुछ नुकसान हैं: एकाधिकार का दुरुपयोग, अल्पावधि को दीर्घकालिक से अधिक महत्व दिया जाना, मुफ्त लंच सिंड्रोम और 'परिवार की चांदी बेचना'।
निजीकरण सरकार को कैसे प्रभावित करता है :
यह आम तौर पर सरकारों को पैसा बचाने और दक्षता बढ़ाने में मदद करता है , जहां निजी कंपनियां माल को तेजी से और अधिक कुशलता से ले जा सकती हैं। निजीकरण के आलोचकों का सुझाव है कि शिक्षा जैसी बुनियादी सेवाएँ, बाज़ार की ताकतों के अधीन नहीं होनी चाहिए।
निजीकरण का अर्थ क्या है :
निजीकरण का क्या मतलब है :
निजीकरण माध्यम से अर्थव्यवस्था पर सरकार का नियंत्रण कम होता है तो निजी उद्योगपतियों का दबदबा बढ़ जाता है। जिसके कारण जहां एक तरफ रोजगार की कोई गारन्टी नहीं रहती वही दूसरी तरफ प्रति व्यक्ति आय दर मे असंतुलन भी बढ़ जाता है। निजीकरण से निजी क्षेत्र मे सामाजिक उद्देश्यों के प्रति उदासीनता नजर आती है।
निजीकरण के क्या लाभ हैं :
निजीकरण के कितने तत्व हैं :
इसके दो प्रमुख कारण है । एक तो यह कि सरकार के पास संसाधनों की कमी है और दूसरा यह कि सार्वजनिक क्षेत्र के कई प्रतिष्ठान अकुशल हैं ओर घाटे पर चल रहे हैं । यदि भारत में नजीकरण के तरीके पर दृष्टिपात किया जाए तो स्पष्ट होता है कि यहाँ विनिवेश ही निजीकरण का मुख्य आधार रहा है।
निजी अर्थव्यवस्था क्या है :
निजी उद्यमों में अर्थव्यवस्था का निजी क्षेत्र शामिल होता है। एक आर्थिक प्रणाली जिसमें १) में एक बड़ा निजी क्षेत्र होता है जहां निजी तौर पर चलाए जाने वाले व्यवसाय अर्थव्यवस्था की रीढ़ होते हैं, और २) व्यवसाय अधिशेष मालिकों द्वारा नियंत्रित किया जाता है, इसे पूंजीवाद कहा जाता है।
निजीकरण की कौन सी विधि हो सकती है :
अराष्ट्रीयकरण और विनिवेश निजीकरण के तरीके हो सकते हैं। सार्वजनिक क्षेत्र इकाई के शेयरों को निजी उद्यमों को बेचना या उनका परिसमापन करना।
भारत में निजीकरण की शुरुआत किसने की :
भारत प्राइवेट और सार्वजनिक क्षेत्र दोनों के साथ एक मिश्रित अर्थव्यवस्था mixed economy है लेकिन सार्वजनिक क्षेत्र 1991 तक अप्रभावी तरीके से अक्षमता से प्रभावित था। भारत में निजीकरण की शुरुआत साल 1991 में हुई थी। उस समय देश आर्थिक संकट Economic Crisis से गुजर रहा था। इसलिए तब भारत में निजीकरण की शुरुआत तत्कालीन वित्त मंत्री डॉ मनमोहन सिंह Finance Minister Dr Manmohan Singh ने 1991 में एक बड़े आर्थिक संकट के दौरान की थी और सरकार ने घाटे में चल रही कम्पनियों को निजी क्षेत्रो को बेचने का फैसला किया।
ऐसे कठिन समय मे अंतरष्ट्रीय फंडिंग एजेंसियों International Funding Agencies ने सरकार को आर्थिक उदारीकरण Economic Liberalization की तरफ मुड़ने पर विवश किया। इस तरह साल 1991 में नई आर्थिक नीति New Economic policy के अंतर्गत देश मे निजीकरण Privatization की प्रक्रिया शुरू हुई. उसके बाद से यह प्रक्रिया जारी रही और निजीकरण की यह प्रक्रिया बाद की सरकारों ने भी जारी रखी।
1991 की नई औद्योगिक नीति में सार्वजनिक क्षेत्र के लिए कई सुधार उपाय शामिल थे। उनमें से कुछ घाटे में चल रही कंपनी को निजी क्षेत्र में बेचना था और निजी भागीदारी के लिए बढ़ावा दिया गया। 1991 से लेकर अब तक विभिन्न क्षेत्रो में समय-समय पर कई बार प्राइवेटाइजेशन किया गया है। वर्ष 1997 में सरकार नें सार्वजनिक क्षेत्र की 11 कंपनियां जो लाभ की स्थिति में थी, उन्हें नवरत्न का दर्जा दिया इसके साथ ही सार्वजनिक क्षेत्र के इन उपक्रमों को पर्याप्त स्वायत्तता भी प्रदान की गयी ताकि वह अन्तरराष्ट्रीय स्तर International Level पर अपनी पहचान बना सके।
इसमें उपक्रम एमटीएनएल, वीएसएनएल, आईओसी, एचएएल, बीपीसीएल, सेल और गेल MTNL, VSNL, IOC, HAL, BPCL, SAIL and GAIL आदि थे। अब तो सरकार सभी क्षेत्रों में बड़े पैमाने पर निजीकरण यानी सरकारी कंपनियों को बेचने का काम ज़ोर-शोर से करने जा रही है।
क्यों पड़ी निजीकरण की जरूरत :
सार्वजनिक क्षेत्रों का निजीकरण क्यों ज़रूरी है? क्यों सरकार को सार्वजनिक क्षेत्रों को निजी हाथों में सौंपने की ज़रूरत पड़ी? यह कई ऐसे सवाल हैं जो हर किसी के जेहन में जरूर आते हैं। आखिर ऐसे कौन से कारण थे जिनके कारण सरकार को आर्थिक नीति के तहत निजीकरण की शुरुआत करनी पड़ी।
दरअसल इसका मुख्य कारण आज़ादी के बाद देश की बिगड़ी हुई अर्थव्यवस्था को सुधारना improve the country's deteriorating economy था और देश की प्रतिव्यक्ति आय व राष्ट्रीय आय को बढ़ाना था। जिससे बेरोजगारी को कम किया जा सके, लोगों का जीवन स्तर सुधारने का प्रयास किया जा सके इसके अलावा सबसे बड़ी बात देश का विकास development of the country हो सके। उस समय देश की अर्थव्यवस्था को चलाने के लिए निजीकरण का कदम उठाना पड़ा और इन तमाम बातों के कारण ही निजीकरण की ज़रूरत महसूस हुई।
दरअसल जब देश साल 1990 मे देश आर्थिक बदहाली के दौर से गुजर रहा था। उस वक्त देश में विकास संबंधी सभी कार्य हो रहे थे लेकिन विकास के लिए जिन चीज़ों की ज़रूरत थी वो नहीं मिल पा रही थीं। इन परेशानियों से बचने के लिए 1991 में सरकार द्वारा आर्थिक नीति के तहत उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण Liberalization, Privatization and Globalization की नीतियाँ अपनाई गयीं।
निजीकरण की ज़रूरत क्यों पड़ी इसके अन्य मुख्य कारण भी जान लेते हैं जैसे सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों में आवश्यकता से अधिक कर्मचारी हैं। जहां 2 लोग काम कर रहे हैं वहाँ एक व्यक्ति की आवश्यकता है। साथ ही सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों का खराब प्रदर्शन और सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों का घाटे में चलना भी निजीकरण का कारण है। इसके अलावा सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों में राजनीतिक नेताओं का हस्तक्षेप Interference of Political Leaders और सार्वजनिक क्षेत्र में निर्णय लेने की धीमी प्रक्रिया slow decision making process से परियोजनाओं में देरी होना है।
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