होली क्यों मनाते हैं : कोसारे महाराज

समस्त देशवासियों को होली की हार्दिक शुभकामनाएं। आपको और आपके परिवार को होली की हार्दिक शुभकामनाएं ll ईश्वर से प्रार्थना है कि यह रंगों का त्यौहार आप सभी के जीवन में अपार खुशियाँ लाये।

होली क्यों मनाते हैं : कोसारे महाराज





हिरण्यकशिपु की बहन होलिका को वरदान प्राप्त था कि वह आग में भस्म नहीं हो सकती। हिरण्यकशिपु ने आदेश दिया कि होलिका प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठे। आग में बैठने पर होलिका तो जल गई, पर प्रह्लाद बच गया। ईश्वर भक्त प्रह्लाद की याद में इस दिन होली जलाई जाती है।


होली की असली कहानी क्या है?


हिरण्यकश्यप प्राचीन भारत का एक राजा था जो कि राक्षस की तरह था। वह अपने छोटे भाई की मौत का बदला लेना चाहता था जिसे भगवान विष्णु ने मारा था। इसलिए अपने आप को शक्तिशाली बनाने के लिए उसने सालों तक प्रार्थना की। आखिरकार उसे वरदान मिला। लेकिन इससे हिरण्यकश्यप खुद को भगवान समझने लगा और लोगों से खुद की भगवान की तरह पूजा करने को कहने लगा। इस दुष्ट राजा का एक बेटा था जिसका नाम प्रहलाद था और वह भगवान विष्णु का परम भक्त था। प्रहलाद ने अपने पिता का कहना कभी नहीं माना और वह भगवान विष्णु की पूजा करता रहा। बेटे द्वारा अपनी पूजा ना करने से नाराज उस राजा ने अपने बेटे को मारने का निर्णय किया। उसने अपनी बहन होलिका से कहा कि वो प्रहलाद को गोद में लेकर आग में बैठ जाए क्योंकि होलिका आग में जल नहीं सकती थी। उनकी योजना प्रहलाद को जलाने की थी, लेकिन उनकी योजना सफल नहीं हो सकी क्योंकि प्रहलाद सारा समय भगवान विष्णु का नाम लेता रहा और बच गया पर होलिका जलकर राख हो गई। होलिका की ये हार बुराई के नष्ट होने का प्रतीक है। इसके बाद भगवान विष्णु ने हिरण्यकश्यप का वध कर दिया, इसलिए होली का त्योहार, होलिका की मौत की कहानी से जुड़ा हुआ है। इसके चलते भारत के कुछ राज्यों में होली से एक दिन पहले बुराई के अंत के प्रतीक के तौर पर होली जलाई जाती है।


होलिका दहन क्यों जलाई जाती है?



धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक होलिका दहन की कहानी विष्णु के भक्त प्रह्लाद, उसके राक्षस पिता हिरण्यकश्यप और उसकी बुआ होलिका से जुड़ी हुई है। मान्यता है कि होलिका की आग बुराई को जलाने का प्रतीक है। इसे छोटी होली के नाम से भी पुकारा जाता है। इसके अगले दिन बुराई पर अच्छाई की जीत के उपलक्ष्य में होली मनाई जाती है।

होलिका दहन के पीछे की कहानी क्या है?

इस पौराणिक कथा के भिन्न रूप में, हिरण्यकशिपु ने होलिका को अपना दुपट्टा या अग्निरोधक वस्त्र पहनाया था, ताकि उसका पुत्र नष्ट हो जाए, और वह चिता के ऊपर सुरक्षित रह सके। हालाँकि, जैसे ही आग भड़की, होलिका से कपड़ा उड़ गया और प्रह्लाद को ढक लिया। होलिका जलकर मर गई और प्रह्लाद सकुशल बाहर आ गए।



होलिका जलाने से क्या होता है?

हम सभी जानते हैं कि होली (Holi) खेलने से एक दिन पहले होलिका दहन किया जाता है. ये दिन बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है. इस दिन भगवान विष्णु ने हिरण्यकश्यप (Hiranyakashyap) के पुत्र प्रहलाद (Prahlad) की रक्षा की थी. होलिका दहन से ना सिर्फ वातावरण शुद्ध बनता है, बल्कि नकारात्मक शक्तियों का भी नाश करता है.

होली के देवता कौन थे?



हर साल होलिका दहन किया जाता है और होली जलने के दूसरे दिन धूल भरी होली के प्रतीक के रूप में लोग एक-दूसरे को गुलाल लगाते हैं। इलोजी (भैरूनाथ) लोक देवता के रूप में अपनी पहचान रखते हैं। उन्हें मस्तमौला लोकदेवता के नाम से भी पहचाना जाता है।

लड़कियों को होलिका दहन क्यों नहीं देखना चाहिए?



धर्म शास्त्रों में बताया गया है कि होलिका दहन की आग को नवविवाहित युवतियों को नहीं देखना चाहिए। मान्यता है कि होलिका दहन की आग जलते हुए शरीर का प्रतीक है। इसका मतलब है कि आप अपने पुराने शरीर को जला रहे हैं। इसलिए नवविवाहित लड़कियों को होलिका की आग नहीं देखनी चाहिए।

होली की शुरुआत कैसे हुई?



यह कहानी भगवान विष्णु के अवतार भगवान कृष्ण के समय तक जाती है। माना जाता है कि भगवान कृष्ण रंगों से होली मनाते थे, इसलिए होली का त्योहार रंगों के रूप में लोकप्रिय हुआ। वे वृंदावन और गोकुल में अपने साथियों के साथ होली मनाते थे। वे पूरे गांव में मज़ाक भरी शैतानियां करते थे। आज भी वृंदावन जैसी मस्ती भरी होली कहीं नहीं मनाई जाती। होली वसंत का त्यौहार है और इसके आने पर सर्दियां खत्म होती हैं। कुछ हिस्सों में इस त्यौहार का संबंध वसंत की फसल पकने से भी है। किसान अच्छी फसल पैदा होने की खुशी में होली मनाते हैं। होली को ‘वसंत महोत्सव’ या ‘काम महोत्सव’ भी कहते हैं।

होलिका का असली नाम क्या है?





होलिका हिरण्याक्ष एवं हिरण्यकसिपु नामक दैत्यों की बहन और कश्यप ऋषि और दिति की कन्या थी । जिसका जन्म जनपद- कासगंज के सोरों शूकरक्षेत्र नामक स्थान पर हुआ था।

होली का पूर्व जन्म में कौन थी?

पूर्व में हिरण्यकश्‍यप की नगरी थी हरदोई और वह हरि का द्रोही था इसलिए उन्होंने इसका नाम हरिद्रोही रखा था। उसका पुत्र प्रह्लाद भगवान हरि का भक्त था और उसी को मारने के लिए हिरण्यकश्‍यप ने अपनी बहन होलिका को उसकी गोद में अग्नि कुंड में बैठाया था। होलिका को वरदान था कि आग से वह नहीं जलेंगी।

होली पर किस भगवान की पूजा की जाती है?

क्या है होली की कहानी? Holi also celebrates the Hindu god Krishna and the legend of Holika and Prahlad. हिरण्यकशिपु एक दुष्ट राजा था। उसके पास विशेष शक्तियाँ थीं जिसने उसे लगभग अजेय बना दिया था और वह चाहता था कि उसके राज्य में हर कोई उसकी पूजा करे।

होलिका के पुत्र का नाम क्या था?


अग्निदेव से इन्हें वरदान में ऐसा वस्त्र मिला था जिसे धारण करने के बाद अग्नि उन्हें जला नहीं सकती थी। बस इसी बात के चलते हिरण्‍यकश्‍यप ने उन्‍हें यह आदेश दिया कि वह उनके पुत्र प्रह्लाद यानी कि होलिका के भतीजे को लेकर हवन कुंड में बैठें। भाई के इस आदेश का पालन करने के लिए वह प्रहलाद को लेकर अग्नि कुंड में बैठ गईं।

होली के रंग ?

पहले होली के रंग टेसू या पलाश के फूलों से बनते थे और उन्हें गुलाल कहा जाता था। वो रंग त्वचा के लिए बहुत अच्छे होते थे क्योंकि उनमें कोई रसायन नहीं होता था। लेकिन समय के साथ रंगों की परिभाषा बदलती गई। आज के समय में लोग रंग के नाम पर कठोर रसायन का उपयोग करते हैं। इन खराब रंगों के चलते ही कई लोगों ने होली खेलना छोड़ दिया है। हमें इस पुराने त्यौहार को इसके सच्चे स्वरुप में ही मनाना चाहिए।


कोसारे महाराज ने दी होली पर लकड़ी के बजाय होलिका दहन में जलाइए गोबर के कंडे या गोबर की लकड़ियों जलाने की सलाह सपूर्ण देशवासीयो को संदेश :



होली पर कंडों का दहन करने से नकारात्मक शक्तियां खत्म होंगी पर्यावरण संरक्षण के लिए लकड़ी के बजाय गोबर के कंडों की होलिका का दहन किया जाना चाहिए। इससे न केवल पर्यावरण को होने वाले नुकसान पर रोक लगेगी, बल्कि नकारात्मक शक्तियों का भी खात्मा होगा। अभी आज के आधुनिक युग में में हमारे देश में प्रदुषण का प्रभाव काफी तेज हो गया हैं इस द्वार में हम सभी को मिलकर इस होली का कार्यक्रम को अच्छे रूप से कैसे सफल बना सकते हैं हम सबको एक ही मंच पर आकर सकारात्मक तरीके से इसका विचार करना होगा सुनने में ऐसा भी आया हैं की इस वर्षो से गौशाला में इन दिनों गाय के गोबर से लकड़ियों का निर्माण किया जा रहा है. इस प्रयोग से जहां एक ओर पेड़ों की बचत होगी, वहीं पर्यवारण को भी नुकसान नहीं पहुंचेगा. इन लकड़ियों का इस्तेमाल किसी भी कार्य में किया जा सकता है. साथ ही लोगों को रोजगार भी मिल रहा है.


दरअसल, होली नजदीक है, ऐसे में होलिका दहन के लिए लोग काफी मात्रा में पेड़ों की कटाई करते हैं, जिसका पर्यावरण पर भी बुरा असर पड़ता है. ऐसे में पर्यावरण संरक्षण और प्रदूषण नियंत्रण का संदेश देने के लिए गौशाला में मशीनों द्वारा विभिन्न प्रकार की बड़ी-बड़ी लकड़ियों का निर्माण किया जा रहा है. इन लकड़ियों का निर्माण गाय के गोबर से किया जा रह हैं


आधुनिक युग में गुजरे जमाने की होली मनाने की परंपरा हुई विलुप्त ?


आज के आधुनिक युग में गुजरे जमाने की होली मनाने की पुरानी परंपरा विलुप्त होती दिख रही है। दो दशक पूर्व फागुन माह प्रवेश करते ही लोग होली त्योहार की तैयारी में जुट जाते थे। लोगों में त्योहार को लेकर काफी उत्साह रहता था। लेकिन आज के दौर में गुजरे जमाने की होली मनाने की परंपरा लगभग समाप्त हो चुकी है। बुजुर्गों ने बताया कि आज से करीब दो दशक पूर्व फागुन माह प्रवेश करते ही होली की तैयारी शुरू हो जाती थी। लोगों में होली को लेकर काफी उत्साह दिखता था। पुरानी संस्कृति के अनुसार शाम ढलते ही होली गीत गाने वालों की टोली जुटती थी। देर रात तक गीत गाने का दौर चलता रहता था। देवी-देवताओं पर आधारित होली गीत गाए जाते थे। होली की गीतों से पूरा गांव गुंजायमान रहता था। इसमें बुजुर्ग, युवा व बच्चे एक साथ बैठते थे। यहां तक कि एक परिवार के लोग साथ में होली गीत गाते थे। इस दौरान महिलाएं भी गीत सुनने के लिए पहुंचती थीं। अभी भी ग्रामीण इलाकों में कुछ जगहों पर परंपरागत गीत की धुन सुनाई पड़ती है। आज के दौर में ज्यादातर ध्वनि विस्तारक यंत्र से होली गीत सुनाई पड़ती है। गीत के बोल में अश्लीलता झलकती है। यहां तक की अभी की होली गीत अपने परिवार के सदस्यों के साथ सुना नहीं जा सकता है। खासकर महिलाओं को अभी की होली गीतों से शर्मसार होना पड़ रहा है। इससे होली की पुरानी परंपरा समाप्त होने के कगार पर है।


होलिका दहन में गोबर से बनी लकड़ी और कंडे जलाएं, पेड़ कटने से बचाएं ?



हर साल होलिका दहन के लिए शहर से लेकर गांवों तक हजारों पेड़ काट दिए जाते हैं। इससे पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है। हर साल होलिका दहन के लिए शहर से लेकर गांवों तक हजारों पेड़ काट दिए जाते हैं। इससे पर्यावरण को नुकसान पहुंचता है। पेड़ों को काटकर जलाने के बजाय यदि गोबर से बनी लकड़ी और कंडों को जलाया जाए तो पर्यावरण को बचाया जा सकेगा। पर्यावरण को बचाने के लिए ज्यादा से ज्यादा गोबर की लकड़ी का उपयोग करने के प्रति जागरूक किया जा रहा है। होलिका दहन में गोबर की लकड़ी जलाने से प्रदूषण नहीं फैलता और इससे हजारों लोगों को रोजगार मिल सकता है। गोबर की लकड़ी से कम कार्बन उत्सर्जित होता है। गोकाष्ठ तीन-चार घंटे में ही जलकर खत्म हो जाता है, जबकि पेड़ की लकड़ी दो दिनों तक जलती रहती है। पहले गोशाला का गोबर केवल कंडे जलाने में उपयोग में लाया जाता था। अब इससे लकड़ी बनने से गोशाला की आमदनी भी बढ़ रही है। महिलाओं को घर बैठे काम मिल मिल जायेगा ।

एक माह पूर्व से होलिका दहन की होती थी तैयारी ?

बुजुर्गों ने बताया कि होलिका दहन के बाद हिदू रीति-रिवाज के अनुसार नये साल का आगाज होता था। गुजरे जमाने में गांव के एक स्थान पर होलिका दहन किया जाता था। इसके लिए करीब एक माह पूर्व से तैयारी की जाती थी। शाम होते ही ढोल-बाजे के साथ युवाओं की टोली निकलती थी। और लोगों के घर पहुंचकर होली गीत गाते थे। इसके साथ ही गोइठा, लकड़ी का संग्रह किया जाता था। होलिका दहन के दिन बुजुर्ग, युवा, बच्चे व महिलाओं की भीड़ जुटती थी। और देवी-देवताओं का सुमिरन कर ब्राह्मणों द्वारा मंत्रोच्चारण के साथ होलिका दहन किया जाता था। सुबह होने के बाद लोग होलिका दहन स्थल पर पहुंचकर राख की टिक लगाते थे। इसके साथ ही होली खेलने का दौर शुरू होता था। लेकिन आज एक ही गांव में दर्जनों जगह होलिका दहन किया जाता है।

आपसी भाईचारे के साथ मनाई जाती थी होली ?

बुजुर्गों ने बताया कि दो दशक पूर्व होली के अवसर पर बाहर रहने वाले लोग अपने घर पहुंच जाते थे। और अपने परिवार के साथ मिलकर होली पर्व मनाते थे। इसके साथ ही पुआ, पूड़ी, खीर समेत विभिन्न व्यंजन बनाया जाता था। पूरे परिवार एक जगह बैठकर खाते थे। साथ ही लोग एक दूसरे के घर पहुंचते थे। बुजुर्गों के पैर पर अबीर लगाकर आशीर्वाद लेते थे। एक-दूसरे को अबीर-गुलाल लगाकर पर्व की बधाई भी देते थे। उस वक्त लोगों के बीच आपसी भाईचारा दिखता था। आज के दौर में होली पर्व पर लोग आपसी दुश्मनी का बदला लेने में जुटे हैं। जिसके कारण सभ्य लोग घर से बाहर भी निकलना नहीं चाहते हैं। और लोगों के बीच आपसी भाईचारा समाप्त होता दिख रहा है।

सुरक्षा के बीच मनाई जाती है होली ?

बुजुर्गों ने बताया कि दो दशक पूर्व होली पर्व आपसी भाईचारे के साथ मनाई जाती थी। लोग एक-दूसरे के घर पहुंचकर अबीर-गुलाल लगाकर पर्व की बधाई देते थे। और आपस में कोई मारपीट व झगड़ा नहीं होता था। इसके लिए कोई बैठक तक नहीं होती थी। आज के दौर में होली पर्व पर पंद्रह दिनों से पूर्व से शांति समिति की बैठक होती है। और प्रशासनिक पदाधिकारी द्वारा पर्व को शांतिपूर्ण संपन्न कराने के लिए आदेश जारी किया जाता है। इसके साथ ही पर्व के दिन गली-मोहल्लों में पुलिस जवान को तैनात किया जाता है।

कहते हैं बुजुर्ग ?



होली ने केवल रंगों का त्योहार है। बल्कि सामाजिक सद्भावना का पर्व है। पहले की होली काफी मनमोहक होती थी। फागुन महीना शुरू होते ही होली गीतों के माध्यम से देवी-देवताओं का सुमिरन किया जाता था। लेकिन अब होली ने अश्लीलता का रूप ले लिया है। पुरानी परंपरा व उन दिनों की बात ही समाप्त हो गई है। इसके साथ ही आपसी भाईचारा भी समाप्त हो चुका है।


कोसारे महाराज ( संस्थापक, राष्ट्रीय अध्यक्ष )
मानव हित कल्याण सेवा संस्था अधिक पढ़ें

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