सबसे गरीब वही होता है जिसे कुछ देना नहीं आता :
सेवा भाव इस नश्वर जीवन का अद्भुत सौंदर्य है और सृष्टि का रागात्मक पक्ष भी। सेवा से मन तो तृप्त होता ही है, मन की खिड़कियां भी रोशन रहती हैं। यह प्रमाणित है कि खुशियां बांटने से बढ़ती हैं, इत्र बांटने वाले के हाथ खुद ब खुद सुगंध से सराबोर रहते हैं। जीवन में सेवा भाव का अभ्यास करते रहना चाहिए। यह समता भाव को विकसित करता है। सच्चे मानव वही हैं जो सेवा को तत्पर रहते हैं। ऐ चमक-दमक के पीछे भागने वाले पगले! सुन, अगर सेवा जैसी चीजों में आस्वाद नहीं खोज सकते तो जाने दो, जीवन जीना तुम्हें नहीं आया।’ दरअसल किसी के लिए मदद का भाव पैदा होते ही मन में हरियाली छा जाती है। कोई भी दुश्मन नहीं लगता।
सेवा करने की इच्छा मात्र ही हृदय में गहरे पैठकर सौम्यता से सारा संकोच निकालकर माधुर्य ला देती है। जब हम सेवा को जीवन मंत्र बना लेते हैं तो हर किसी को ऊंचाई पर जाते देख हम खुशी से झूम उठते हैं। निश्छल भावों और विचारों का आदान-प्रदान किसी की निस्वार्थ सेवा से ही संभव है। यह एक ऐसा साधन है, जो दूरस्थ व्यक्तियों को भावना की एक संगमभूमि पर ला खड़ा करता है और दोनों में आत्मीय संबंध स्थापित करता है। वरना, गहरे संबंध भी कलह से भरे होते हैं युद्ध से सने होते हैं।
मदद करने वाला सेवा भावी लगातार सकारात्मक कल्पना ही कर रहा होता है। यही कल्पना, अच्छे विचारों के लिए खाद-पानी का काम करती है। ऐसे में एकाग्रचित हो पाना आसान हो जाता है। शोध बताते हैं कि मददगार लोग बहुत कम बीमार पड़ते हैं और लंबी उम्र भी जीते हैं।
एक बार एक आदमी ने पूछा, ‘मेरी एक बहुत बड़ी समस्या है कि मैं इतना गरीब क्यों हूं?’ हमने उनसे कहा कि तुम गरीब हो क्योंकि तुमने देना नहीं सीखा।’ वह आदमी बहुत ही उदास होकर बोला, ‘मेरे पास तो देने के लिए कुछ भी नहीं है।’ हमने हंस कर कहा, ‘अपने आप को देखो, चिंतन करो। यह तुम्हारा चेहरा, एक मुस्कान दे सकता है। तुम मुंह से किसी की प्रशंसा या सुकून पहुंचाने के लिए दो मीठे बोल बोल सकते हो। ये हाथ, किसी जरूरतमंद की सेवा कर सकते हैं, और तुम कहते हो तुम्हारे पास देने के लिए कुछ भी नहीं!’
आत्मा की गरीबी ही वास्तविक गरीबी है। सचमुच, पाने का हक उसी को है, जो सेवा करना जानता है। जब हम सबके कल्याण की कामना और किसी भी छोटे काम के जरिए चिंताओं को अपने दिमाग से निकाल देते हैं, ऐसा लगता है कि धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष सब एक छोटे से प्रयास में ही समाहित हो गए हैं। बेचैनी लुप्त होने लगती है घबराहट से मुक्ति मिल जाती है। कारण यह है कि मन स्वार्थी नहीं रह जाता।
कौन हैं किसका दुश्मन :
- रौशनी का दुश्मन अंधकार होता हैं रौशनी जहाँ होता अंधकार नहीं टिक पाता हैं !
- अज्ञान का दुश्मन शिक्षा होता हैं शिक्षा जहाँ आ जाता अज्ञान नहीं टिक पाता हैं !
- गरीबी का दुश्मन अमीरी ? नहीं !
- ये सोच ही हैं जो इंसान को गरीब और अमीर बनाता हैं !
- जन्म लेकर भी गरीब के घर में कोई गरीब नहीं होता हैं
- माँ बाप और उसके परिवेश का सोच गरीब होता हैं !
- जब वो बच्चा अपने सोच का मालिक खुद बनजाता हैं
- और बड़े सोच का मालिक बन वो सोच बड़ा बनाता हैं !
- मालिक तब उसको वो सब देता हैं जो हसरत उसका हैं!
- अब आप बताओ कौन हैं किसका दुश्मन
- एक छोटा सोच जो गरीब बनाता हैं वो दुश्मन होता हैं
- एक बड़ा सोच जो अमीर बनाता हैं वो दोस्त होता हैं !
- अब जब सोच हीं दोस्त सोच हीं दुश्मन होता हैं
- हमको जो बनना होता हैं वो हीं दोस्त हमें चुनना होता हैं
- कहते हैं संगत का असर हमपर बड़ा हीं होता हैं
हमारा सबसे बड़ा दुश्मन कौन है :
हमारा मस्तिष्क बार-बार हमें भूतकाल में खींचकर ले जाता है। वह हमारे ध्यान में भी बाधा पैदा करता है और हमें आनंद से भी दूर कर देता है। मस्तिष्क को साध लेने का अभ्यास हमारी सबसे बड़ी आवश्यकता है।
एक ऐसे ऋषि थे जिन्होंने सारी चीजों का त्याग कर दिया था और ध्यान के लिए वन को चले गए थे। इसी समय में एक ऐसा राजा भी था जिसने दूसरे कई राजाओं के प्रदेश को जीत लिया था।एक दिन राजा ने तय किया कि वह ऋषि को जीतेगा और उसे अपने आदेश मानने के लिए बाध्य करेगा। लोगों को यह थोड़ा अजीब लगा कि राजा ऐसे ऋषि को जीतना चाहता है जिसके पास कोई संपत्ति, राज्य या धन-दौलत नहीं है।
लेकिन तभी यह पता चला कि ऋषि पहले राजा हुआ करते थे और फिर उन्होंने आध्यात्मिक जीवन के लिए राजपाट छोड़ दिया। यही बात थी जिससे राजा को उकसाया कि वह ऋषि को जीतकर दिखाए। तब राजा ने अपनी पूरी सेना सहित ऋषि से युद्ध की तैयारी की।
राजा सेना सहित गहन वन में गया। सेना अंतत: ऋषि तक पहुंच गई जो एक वृक्ष के नीचे ध्यान की मुद्रा में आसीन था। राजा ने प्रतीक्षा की कि ऋषि ध्यान से उठ जाए लेकिन ऋषि उसी तरह बैठे रहे। आखिरकर राजा को क्रोध आया और उसने धक्का देकर ऋषि का ध्यान भंग कर दिया।
राजा ने उद्घोष किया, 'लड़ाई के लिए तैयार हो जाओ। मैं तुमसे युद्ध करने आया हूं।' ऋषि ने चारों तरफ शांति के साथ नजर दौड़ाई।उसने विशाल सेना देखने के बाद कहा, 'लड़ाई! मैं अपने एक बड़े शत्रु से डर के कारण अपना सांसारिक जीवन छोड़कर यहां वन में आकर बैठ गया हूं। जब भी मैं अपने उस शत्रु का नाम सुनता हूं तो मेरी आत्मा कांप उठती है। उसके नाम से ही मैं थर्राने लगता हूं।'
जब ऋषि अपने शत्रु का बखान कर रहे थे तो राजा शांति से सबकुछ सुन रहा था। आखिरकर ऋषि की बातों से राजा को गुस्सा आ गया और उसने कहा, 'क्या तुम्हारा शत्रु मुझसे भी बलशाली है?'
ऋषि ने कहा, 'उस शत्रु के बारे में तो सोचकर ही मेरी आत्मा कांप उठती है। मैं इस शत्रु से बचने के लिए अपना राजपाट और पूरा संसार छोड़ दिया।राजा ने कहा, 'मुझे उस शत्रु का नाम बताओ?'
ऋषि ने कहा, 'उस शत्रु का नाम तुम्हें बताने से कोई फायदा नहीं होगा। तुम उसे कभी नहीं जीत पाओगे।'
राजा ने कहा, 'अगर मैं उसे नहीं जीत पाया तो खुद को असफल मान लूंगा। तब ऋषि ने कहा, 'जिस खतरनाक शत्रु की मैं बात कर रहा हूं वह मस्तिष्क है। उस दिन से राजा ने अपने मस्तिष्क को जीतने की कोशिशें शुरू कर दीं। उसने अपने मस्तिष्क पर नियंत्रण के लिए तमाम प्रयास किए। वर्ष पर वर्ष बीत गए लेकिन वह अपने मस्तिष्क को नहीं जीत पाया। आखिरकर राजा ने ईमानदारी से यह मान लिया कि वह अपने मस्तिष्क को जीतने में असमर्थ रहा है और मस्तिष्क उसका सबसे ताकतवर शत्रु है।
मस्तिष्क शक्तिशाली है और हम अपनी आत्मा को नियंत्रण में लाने का जितना भी प्रयास करते हैं वह इसी के कारण विफल हो जाता है। बहुत- से योगियों और ऋषियों ने अपने मस्तिष्क को जीतने की कोशिश की लेकिन वे असफल रहे। जब उन लोगों की यह स्थिति है जिन्होंने संसार का त्याग कर दिया है तो हम लोगों की क्या बिसात जो दुनियादारी में पड़े हुए हैं।
हमारी आत्मा ईश्वर में लगना चाहती है लेकिन हमारा मस्तिष्क उसे रोकता है। यहां तक कि ध्यानस्थ ऋषियों को भी अपने मस्तिष्क से द्वंद्व करना पड़ता है। सत्य तो यह है कि हम मस्तिष्क को अपने दम पर नियंत्रित नहीं कर सकते हैं।
हमें अगर मस्तिष्क पर लगाम लगाना है तो किसी ऐसे व्यक्ति के सहारे की जरूरत होती है जो यह काम कर चुका है। ऐसा व्यक्ति हमें हमारे भीतर के प्रकाश से रूबरू कराता है। जब भी ध्यान में बैठते हैं तो हमारा मस्तिष्क उसे बाधित करता है। वह हमें भूतकाल में घटी घटनाओं की ओर ले जाता है।
जब भी हम ध्यान में होते हैं तो वह हमें नींद की अवस्था में ला देता है। वह हमारा ध्यान भूख की तरफ खींचता है। वह हमारे भीतर ईर्ष्या पैदा करता है। वह हमें ध्यान से इतर अन्य कामों की ओर खींचना चाहता है। उसके पास बहुत से बहाने होते हैं। आखिर हम ध्यान के बीच में मस्तिष्क की दखलअंदाजी को कैसे रोकें। इसके लिए हमें मस्तिष्क को सकारात्मक आदतों में लगाना होगा। अगर हम अपने मस्तिष्क को याद दिलाएंगे कि हमें रोज एक नियत समय पर ध्यान के लिए बैठना है तो यह आदत बन जाएगा।
आपका सबसे बड़ा दुश्मन कौन है :
आपका सबसे बड़ा दुश्मन कौन है| कौन सी ऐसी चीज़ है, जो आपको सफल नहीं होने दे रही, कौन आपकी राह की सबसे बड़ी बाधा है| लोगो के जवाब में गरीबी, कम शिक्षा, माँ बाप से सपोर्ट नहीं मिलना, समाज का साथ नहीं मिलना, छोटा शहर, इंग्लिश नहीं आना, कम्प्युटर नहीं आना, जैसे अनेक कारण लोगों ने बताए। लेकिन यदि सबसे बड़े दुश्मन को पहचानना हो तो ध्यान से आगे पूरा पढ़िये|
एक कंपनी में, नया मैनेजर आया| उसने देखा कि लोग मेहनत नहीं करते, डिप्रेस्ड हैं और पूरा प्रयास नहीं करते |हर आदमी एक दूसरे को कोसता रहता है|उसने एक दिन सबको एक हाल में बुलाया, उस हाल में अंदर एक पर्दा हुआ लगा था|
मैनेजर ने सबसे कहा, एक-एक करके अंदर आइये और पर्दे के भीतर जाइए|| पर्दे के भीतर एक बड़ा शीशा लगा हुआ था,हर आदमी खुद को देखता और बाहर आ जाता| फिर उसने कहा तुम्हारा सबसे बड़ा दुश्मन कोई और नहीं तुम हो| मैनेजर ने समझाया, तुम्हारा सबसे बड़ा दुश्मन बाहर नहीं है , तुम स्वयं हो|
दुनिया में बड़ा होने से और मेहनत करने से किसी ने भी नहीं रोका है, फिर हम मेहनत क्यों नहीं करते| दुनिया में सुबह जल्दी उठने से,सच बोलने से, बड़ों का आदर करने से, किसी ने नहीं रोका है फिर भी लोग ऐसा क्यों नहीं करते हैं|चाहे लोग कितनी भी दुश्मनी पाल लें, वह आपकी गति को स्लो कर सकते हैं, लेकिन आपको रोक नहीं सकते|
बादल चाहे कितने भी बड़े और घने क्यों नहीं हो, बादल कि औकात नहीं है कि सूरज की रोशनी को रोक ले| जब सूरज उगेगा चीर कर रख देगा| अंधेरा चाहे कितना भी घना क्यों नहीं हो, रात चाहे कितनी भी काली क्यों न हो, रात की औकात सूरज की एक किरण से ज़्यादा की नहीं है| सूरज की एक किरण पड़ी और अंधेरा गायब |
दुनिया में किसी बाधा की हैसियत,आपकी काबिलियत से ज़्यादा नहीं है| आप रुक जाने के लिए स्वयं जिम्मेदार हैं| इंग्लिश नहीं आती, कम्प्युटर नहीं आता तो सीख सकते हो| वज़न ज़्यादा है, दौड़ कर या डाइटिंग से, कम कर सकते हो, |आस-पास किसी को सपोर्ट का नहीं मिलता, दूर जा कर सपोर्ट ले सकते हो| छोटा गाँव है तो बड़े शहर में जा सकते हो|आप जो चाहे, वो कर सकते हैं।
संसाधन नहीं है, तो आज जो है, उसीसे शुरुआत कीजिये | दस लोगों के सामने अपना प्रस्ताव दे,अपना आइडिया पेश कर के छोटा होने में कोई हर्ज़ नहीं है| बड़ा बनने के लिए हर आदमी को छोटा बनना पड़ता है, इसलिए बहाना बनाना छोड़िए |
सबसे बड़े दुश्मन सिर्फ आप हैं , आपने रोका है अपने आप को| आप एक्शन से ज़्यादा बातें करते रहे, पसीना बहाने से ज़्यादा घर में बैठ कर सपने बुनते रहे या आने वाले कल से डरते रहे | “फियर ऑफ अननोन” अर्थात “अज्ञात का भय”, दुनिया का सबसे बड़ा डर है| इस भय का कोई आधार नहीं है ,फिर भी सबसे कॉमन है|आप को हराना है, तो आप को खुद को हराना होगा, दुनिया को जीतने के लिए पहले खुद को जिताना होगा |
जिसने खुद को जीत लिया, उसने दुनिया को जीत लिया| जिसने खुद पर अनुशासन कर लिया, उसने दुनिया पर अनुशासन कर लिया, जिसने खुद का सम्मान कर लिया, उसने दुनिया का सम्मान कर लिया| जिसने खुद की आदतें बदल ली, दुनिया उसके रास्ते में बिछ गयी| जिसने खुद सफलता हासिल कर ली, वह दुनिया के लिए ‘रोल मॉडल’ हो गया|
सिर्फ और सिर्फ एक को हराना है, खुद को| आपका कोंपीटीशन बाहर किसी से नहीं है, आपका कोंपीटीशन अपने आप से है |कल जो आपने परफ़ार्म किया था, उससे बेहतर आज परफ़ार्म करना है| कल आप जो थे,आज आपको उससे बेहतर बनना है |
सबसे बड़े दुश्मन सिर्फ आप हैं , आपने रोका है अपने आप को| आप एक्शन से ज़्यादा बासिर्फ और सिर्फ एक को हराना है, खुद को| आपका कोंपीटीशन बाहर किसी से नहीं है, आपका कोंपीटीशन अपने आप से है |कल जो आपने परफ़ार्म किया था, उससे बेहतर आज परफ़ार्म करना है| कल आप जो थे, आज आपको उससे बेहतर बनना है |
हल्के लोग मिले तो फूल मत जाना, आसमान में मत चढ़ जाना, ज़मीन से दो फुट मत उठ जाना क्योंकि जिसके आस-पास ऐसे लोग हैं, जो वाह-वाह करते रहते हैं, उसके पतन का दौर शुरू हो जाता है| हर आदमी के आस-पास ऐसे लोग होने चाहिए जो उसे छोटा बनाए रखें, जो उसको खुद का सामाना करने में हीनता महसूस कराते रहें| जिसने खुद पर विजय हासिल कर ली, वह दुनिया पर विजय हासिल कर सकेगा |
आज इस दुश्मन को हराओ, अगले हफ्ते नहीं, अगले महीने नहीं, अगले साल नहीं| आदर्श स्थिति का इंतज़ार मत करो, इस दुश्मन को हराओ, इस दुश्मन को हरा लोगे तो बाहर किसी की ताकत नहीं कि तुमको रोक ले |
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