समाज और हम एक दुसरे पे निर्भर है : Kosare Maharaj

कोसारे महाराज कॉलेज, अनाथ आश्रम एवं वृद्ध आश्रम का संचालन मानव हित कल्याण सेवा संस्था द्वारा किया जायेगा वर्तमान में प्रस्ताव प्रगति पर है।

समाज और हम एक दुसरे पे निर्भर है


                 हम समाज के लिए समाज हमारे लिए. हम समाज के लिए समाज हमारे लिए ये वाक्य एक सच है  हम समाज पे निर्भर है ओर समाज हम पर हम लोगों से समाज बनता है और समाज से लोग. हम लोग समाज मै रहते है और समाज के रीती – रिवाजों को मानते है.समाज भी लोगो के हित के  लिए बहुत कुछ करता है. इसलिए समाज और हम एक दुसरे पे निर्भर है. चुनावों में हर एक प्रत्याशी अपने विरोधी प्रत्याशी को चुनौती देता है मगर अंतिम विजय उसी की होती है जिसको आम जनमानस का साथ मिलता है। सियासत में विरोधियों को हराना और जनता का दिल जीतना सामाजिक एकता मजबूरी नही जरुरी है।

एकता में क्या बल है :                  

        एकता के पाठ को बनाओ अपना धर्म, इसके प्रचार को बढ़ाकर पूरा करों अपना कर्म। समाज में एकता की भावना का प्रसार करना हमारा कर्तव्य ही नही दायित्व भी है। एकता में जो बल है वो सबसे प्रबल है सामाजिक एकता बिना तरक्की और खुशहाली प्राप्त करना असंभव है। धर्म जाती के अंतर को तोड़ो, हाथ मिलाओ भारत को जोड़ो। एकता देती है समाज को शक्ति, इसके द्वारा हम प्राप्त कर सकते हैं अपने अधिकारों की अभिव्यक्ति। एकता में ही बल है और इससे देश का सुनहरा कल है। एकता लाती है समाज में नया उत्साह, लोगो के ह्रदय में करती है प्रेम का प्रवाह। एकता और प्रेम है राष्ट्रहित के अनुकूल, झगड़ा और आपसी फूट है इसके प्रतिकूल। एकता की शक्ति सबसे महान है, अज्ञानी हैं वो लोग  जो इससे अनजान हैं। अनेकता में एकता, यही है हमारे देश की विशेषता। एकता का किला बड़ा मजबूत होता हैं. इसके भीतर रहकर कोई प्राणी दुःख नहीं भोगता।

मानव जाति में एकता क्यों हो :

               स्थायी एकता वहीं उत्पन्न होती हैं जहाँ अंतःकरण एक होते हैं। मानव-जाति को एकता का पाठ चींटियों से सीखनी चाहिए। हमारी ताकत और स्थिरता के लिए हमारे सामने जो जरूरी काम हैं उनमें लोगों में एकता और एकजुटता स्थापित करने से बढ़ कर कोई काम नहीं हैं। बहुत-से कमजोर लोगों की एकता भी अजेय बन जाती हैं. कमजोर तिनकों से बनाई गयी रस्सी बड़े-बड़े हाथियों को भी बाँध लेती हैं। एकता से हमारा अस्तित्व कायम रहता है, विभाजन से हमारा पतन हो जाता है। तुम्हारे अभिप्राय एक समान हों, तुम्हारे अंतःकरण एकसमान हों और तुम्हारे मन एकसमान हों, जिससे तुम्हारी सामुदायिक शक्ति का विकास हो। एक साथ आना शुरूआत हैं, एक साथ रहना उन्नति हैं और एक साथ काम करना सफलता हैं।

आत्मनिर्भरता क्या है :

आत्मर्निभर शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है, ‘आत्म’ और ‘र्निभर’, यह संस्कृत भाषा से लिया गया शब्द है।


‘आत्म’ शब्द का आशय स्वंय से हैं और ‘निर्भर’ शब्द से आशय उन सभी कामों से हैं जो आप खुद करते हैं या दूसरों से करवाते हैं । आत्मनिर्भरता आपको दूसरों की परवाह किए बिना, वो करने की आज़ादी देती है जो आप चाहते हैं। साथ ही, अध्ययनों से ज्ञात होता है कि अधिक आत्मनिर्भर लोग ख़ुद को ज़्यादा ख़ुश महसूस करते हैं, ऐसा इसलिए होता है क्योंकि जब हम अपनी ज़िन्दगी को अपने हाथों में लेने के काबिल हो जाते हैं, तब ज़्यादा राहत और संतुष्टि का अनुभव करते हैं। दुनिया र्निभरता पर आधारित है। अर्थात दुनिया में जो भी कुछ है वो किसी न किसी पर निर्भर है और ये निर्भरता ही दुनिया को संचालित करती है।


दुनिया में सभी एक दूसरे पर निर्भर हैं फिर चाहें वो व्यक्ति, समाज, शहर हो या राज्य, देश, महाद्वीप आदि ये सब एक दूसरे पर ही निर्भर हैं, और होना भी चाहिए लेकिन किस हद तक? क्योंकि निर्भरता जब अत्यधिक हो जाती हैं तब ये कमजोर बना देती हैं। और इसलिए इस कमजोरी को दूर करने के लिए दूसरों पर निर्भरता को कम करते हुए आत्मनिर्भर बनना चाहिए।

आत्मनिर्भरता का महत्व एवं लाभ क्या हैं :

(क) आत्मविश्वास में वृद्धि:- आत्मनिर्भर व्यक्ति में दूसरों से ज्यादा आत्मविश्वास होता है।

(ख) साहस में वृद्धि:-आत्मनिर्भर व्यक्ति में किसी दूसरे पर अवलंबित इंसान की तुलना में अधिक साहस होता है।
(ग) नेत्तृत्व के गुण में वृद्धि:-आत्मनिर्भरता से नेतृत्व के गुण में वृद्धि होती है।
(घ) श्रेष्ठ की छवी बनना:- आत्मर्निभर व्यक्ति में दूसरों की अपेक्षा श्रेष्ठ छवी बनती हैं जिसके प्रति समाज में सब आदर भाव रखते हैं।
(ङ) दूसरे होंगे आप पर निर्भर:- आत्मनिर्भर होने से अन्य लोग आप पर निर्भर होने लगते हैं, क्योंकि समाज कमजोरों पर नहीं बल्कि बलवानों पर निर्भर है।
(च) समाज में सम्मान:- आत्मनिर्भरता समाज में व्यक्ति को मान और सम्मान दिलाती हैं, यानि समाज उसकी इज्ज़त करता हैं, जो समाज पर कम अवलंबित होते हैं।
(छ) श्रेष्ठ पद पर पहुंचाने में मददगार:- आत्मनिर्भरता व्यक्ति, समाज, राज्य, देश आदि को श्रेष्ठ पद पर पहुंचाने का बहुत ही उत्तम ज़रिया है। क्योंकि श्रेष्ठ पद पाने के लिए व्यक्ति में बल, साहस, निर्णय लेने की क्षमता जैसे गुण होने चाहिए जो आत्मनिर्भरता से प्राप्त होते हैं।
आत्मनिर्भरता के नुकसान एंव दोष:- जैसा कि आप सभी जानते हैं कि किसी भी चीज की अति भी हानिकाकारक होती है। आत्मनिर्भरता के भी कुछ नुकसान एंव दोष हैं जो निम्नलिखित हैं:
(क) अवलंबन सीमित होती है:-आत्मनिर्भरता अवलंबन की सीमाओं का उल्लघंन करती हैं, जो सही भी हैं लेकिन एक हद तक। यदि आप उस सीमा से बाहर चले जाते हैं तो आपको कुछ नुकसानों का सामना करना पड़ सकता है।
(ख) मधुरता की कमी होना:- आत्मनिर्भर होना बहुत अच्छी बात है लेकिन अधिक आत्मनिर्भरता कभी–कभी दूसरों के प्रति मधुर संबंधों में कमी पैदा कर सकती है।
(ग) अंहकार भाव का आना:- ज्यादा आत्मनिर्भर होने का नतीजा यह होता है कि आप के भीतर अहंकार भाव की वृद्धि होने लगती हैं और यह तब तक अच्छा है जब तक कि यह अहंकार की भावना दूसरों को नुकसान ना पहुचाएं।
(घ) द्वेष भाव होना:-आत्मनिर्भरता का गुण व्यक्ति को श्रेष्ठ पद का अधिकारी तो बनाता हैं, परन्तु इसके साथ ही द्वेष भावना मन में आ जाती हैं। इसकी वजह से फिर व्यक्ति, अपने आगे और बड़ा किसी को नहीं समझता। ऐसे में वो किसी को नुकसान पहुंचाने की भी सोच सकता है।




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