जो निस्वार्थ
सेवा करते हुए अपने जीवन को व्यतीत करते हैं। आज हर काम इंसान स्वार्थ और मजबूरी
से करता है। लेकिन हर कोई इंसान स्वार्थी नहीं होता है कुछ लोग होते हैं जो समाज
में बदलाव अपने दम पर लाते हैं। क्या समाज सेवा मात्र समाजसेवियों की ज़िम्मेदारी
है? उन समाजसेवियों का सहयोग करना हर नागरिक की
ज़िम्मेदारी होनी चाहिए जो हाथ भगवान की प्रार्थना के लिए उठते हैं
लेकिन समाज सेवा के लिए नहीं भगवान भी उन हाथों की प्रार्थना सुनने से पहले सौ बार सोचते हैं हर वर्ग हर जाति हर धर्म से लगाव चाहिए जनसेवा के लिए समर्पण का भाव चाहिए प्रसिद्धि के लिए समाज सेवा नहीं बल्कि समाज सेवा से प्रसिद्धि होनी चाहिए
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