सृष्टि की रचना किसने की : Kosare Maharaj
सृष्टि का
निर्माण कैसे हुआ? जो सारा
ब्रह्माण्ड आज हम देख रहे हैं,
उसे किसने
बनाया? दुनिया से
परे की किसी चीज ने इसे बनाया है। आपने और हमने
इस धरती को नहीं बनाया,यह बात साफ़
है। फिर इसे बनाया किसने? आप सृष्टि
की रचना के पीछे का विज्ञान जानते हैं। दुनियाभर के धर्म अपनी- अपनी व्याख्याएं
देते रहे हैं, जिन्हें आम
तौर पर एक खास मकसद से सुनाया जाता है। जरूरी नहीं है कि उसे सही आंकड़ों के रूप
में प्रस्तुत किया जाए, बल्कि उसे
एक खास इरादे के साथ बताया जाता है। विज्ञान का कहना है कि एक बिग-बैंग यानी एक
बहुत बड़ा धमाका हुआ और धुंधली गैसें ठोस होती गईं, फिर इस सृष्टि की रचना हुई। यह तथ्य के आधार पर सही है। कोई और
कहता है कि ईश्वर ने सारा ब्रह्मांड बनाया - जो तथ्य नहीं है, मगर सत्य
है। जब हम कहते हैं कि ईश्वर ने सृष्टि की रचना की, तो पहला सवाल यह है कि ईश्वर के बारे में हमारी धारणा क्या है? हमारे
दिमाग में ईश्वर का ख्याल कैसे आया? हमने ईश्वर का आविष्कार क्यों किया? सिर्फ
इसलिए क्योंकि हमारे पास सृष्टि के निर्माण के लिए कोई स्पष्टीकरण नहीं था।
तो
आखिर जो सारी सृष्टि हम देख रहे हैं, उसे किसने बनाया? इसका सबसे सरल स्पष्टीकरण यह है कि दुनिया से परे की किसी चीज
ने इसे बनाया। आपने और मैंने इस धरती को नहीं बनाया, यह बिल्कुल स्पष्ट है। फिर इसे बनाया किसने? चूंकि हम
इंसान हैं, तो हमने
सोचा कि वह कोई बहुत बड़ा इंसान होगा। अगर आप भैंस होते, तो आपको
लगता कि उसके पीछे किसी बहुत बड़ी भैंस का हाथ होगा। चूंकि आप खुद मनुष्य हैं
इसलिए आप ईश्वर को एक मनुष्य के रूप में देखते हैं। मान लीजिए आप चींटी होते, तो ईश्वर
के बारे में आपका विचार एक बड़ी चींटी का होता।
तो ईश्वर
को हम जो भी रूप देते हैं, वह हमारी
प्रासंगिकता के मुताबिक है। मगर मुख्य रूप से हम यह स्वीकार करते हैं कि दुनिया से
परे की किसी चीज ने इसकी रचना की है। इसमें कोई संदेह नहीं है। मगर वह परे की चीज
क्या है - इसे लोग अपने तरीके से समझाने की कोशिश करते हैं। मगर कोई समझा नहीं
पाया और उसे समझाया भी नहीं जाना चाहिए। हमसे परे के किसी आयाम ने इसे बनाया, यह एक
वास्तविकता है। दूसरी वास्तविकता यह है कि जब आप पैदा हुए थे, तो आप ऐसे
नहीं थे, आपके पास
एक छोटा सा शरीर था। फिर यह
शरीर इतना बड़ा कैसे हुआ? इसका निर्माण अंदर से होता है या बाहर से? अंदर से। आप भोजन के रूप में कच्चा माल इसे दे रहे हैं, मगर चाहे
आप कुछ भी खाएं, वह भोजन
इंसान बन जाता है। यानी इसमें एक खास बुद्घि, काबिलियत और ऊर्जा है, जो रोटी के एक टुकड़े को इंसान बनाने में सक्षम है। आप चाहे
कुछ भी खाएं, वह चीज
इंसान बन जाता है। तो क्या इस बुद्धि, काबिलियत और ऊर्जा से, जिसे आप ईश्वर कहते हैं, हर चीज की रचना नहीं होती? इस अस्तित्व के आधार को आप ईश्वर कहते हैं। यह सिर्फ एक शब्द
है। आप चाहे उसे ईश्वर कहें,
शिव कहें, राम कहें, चाहे जो भी
कहें, मुख्य रूप
से वह इस सृष्टि का आधार है,
जिसके लिए
आप उसके सामने झुकते हैं, क्योंकि वह
आपसे परे है।
तो क्या वह
अभी आपके अंदर भी सक्रिय है?
आपके शरीर
के अंदर आपका लिवर जो काम कर रहा है क्या उसे आप चला रहे हैं? या कोई और
चीज उसे चला रही है? जिस ऊर्जा
ने इसे बनाया, वही इसे
चला रही है, आप नहीं।
तो सृष्टि का जो आधार है - वह यहीं है। अगर किसी पेड़ को बड़ा होना है, फूल को
खिलना है, और कुछ भी
घटित होना है, तो उसमें
वही ऊर्जा काम कर रही है। यह ‘उसी’ की रचना
है। ‘वह’ क्या है? जीवन की
हमारी धारणा बहुत मानव-केंद्रित है, इसलिए हम सोचते हैं कि ईश्वर एक बड़ा और महान इंसान है। मगर
ऐसा सोचने में कोई बुराई नहीं है,
क्योंकि ‘वह’ हर चीज में
है। इसलिए जब आप देखते हैं कि वही ऊर्जा हर शरीर में सक्रिय है, तो आप हर
किसी को देखकर सिर झुकाते हैं। आप जो ईश्वर के साथ करते हैं, वही हर
किसी के साथ करते हैं। अगर आप किसी व्यक्ति को देखें, तो आप उसे
पसंद या नापसंद कर सकते हैं। अगर आप किसी के शरीर को देखें, तो आप उससे
आकर्षित हो सकते हैं या उससे नफरत कर सकते हैं। अगर आप किसी के मन को देखें, तो आप उसे
स्वीकार या अस्वीकार कर सकते हैं। इसलिए पहली चीज यह कि आप स्वीकार करते हैं कि जो
सृष्टि का आधार है वह हर इंसान में है, इसलिए आप उसके आगे सिर झुकाते हैं।
इसीलिए आप
सिर्फ किसी व्यक्ति विशेष के आगे ही सिर नहीं झुकाते, बल्कि आप
किसी गाय, कुत्ते, चींटी, चट्टान या
पेड़ को देखते हैं, तो उसके
आगे भी झुकते हैं, क्योंकि
सृष्टि का स्रोत हर चीज में सक्रिय है। सृष्टि के पीछे की बुद्धि यहां भी मौजूद
है। अगर आप सोचना चाहते हैं,
तो एक
तरीका यह है कि ईश्वर वह ऊर्जा है जिसने हर चीज की रचना की। सोचने का दूसरा तरीका
यह है कि ईश्वर वह बुद्धि है जो हर चीज को बनाती है, क्योंकि उसकी बुद्धि अद्भुत है। इतने सारे विज्ञान के बावजूद
हम एक पत्ता तक नहीं बना सकते। हम वास्तव में एक परमाणु तक नहीं बना सकते। इसलिए
सृष्टि के पीछे की बुद्धि इतनी अद्भुत है कि अगर आप बुद्धि के प्रशंसक हैं तो उसे
बुद्धि कहेंगे। अगर आप ऊर्जा के प्रशंसक हैं, तो इसे जबर्दस्त ऊर्जा कहेंगे। अगर आप आकारों और रूपों के
प्रशंसक हैं, तो आप इसे
पुरुष, स्त्री या
और कुछ कहेंगे। तो मुख्य बात यह है कि आपके बोध से परे एक आयाम, बुद्धि और
ऊर्जा है, जो हर चीज
को चला रही है। मगर वही ऊर्जा,
बुद्धि और
काबिलियत आपके अंदर भी है। इसलिए वह आपके बोध के परे भी नहीं है। अगर आप चाहें तो
उसका अनुभव कर सकते हैं मगर उसे समझा नहीं सकते। व्याख्याएं मूर्खतापूर्ण हैं।
व्याख्याएं और दलीलें अपने अहं को संतुष्ट करने के लिए होती हैं। मगर उसका अनुभव
करने में हर इंसान सक्षम है।
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कोसारे महाराज :- संस्थापक व राष्ट्रीय अध्य्क्ष
मानव हित कल्याण सेवा संस्था नागपुर
हमारी वेबसाइट में आपका स्वागत हैं
https://www.kosaremaharaj.com
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