आपके संस्कार बताते हैं कि आपकी परवरिश कैसी है, आपकी परवरिश बताती है कि आपका परिवार कैसा है। संस्कार से पूरी दुनिया जीत सकते है, अहंकार से कुछ भी नहीं । अहंकार दूसरों को झुका कर खुश होता है और संस्कार स्वयं झुककर खुश होता है । सोच बदली जा सकती है, पर संस्कार नहीं ।संस्कार दिए नहीं जा सकते, केवल परिवार से सीखे जा सकते हैं । बुढ़ापे में आपको रोटी आपकी औलाद नहीं आपके दिए हुए संस्कार ही खिलाएंगे । संस्कारों से बड़ी कोई वसीयत नहीं होती और दोस्तों से बड़ी कोई विरासत नहीं होती । शिक्षा कहीं से भी प्राप्त कर सकते है लेकिन संस्कार हमेशा घर से मिलते हैं। आजाद रहिए विचारों से पर बँधे रहिए संस्कारों से । सब कुछ कॉपी हो सकता है लेकिन चरित्र, व्यवहार, संस्कार और ज्ञान नहीं । अगर किसी बच्चे को उपहार (गिफ्ट) न दिया जाये तो वह कुछ ही समय रोयेगा।मगर संस्कार न दिए जाए तो वह जीवन भर रोयेगा । इंसान की बातों से, उसके संस्कार का पता चलता है ।
( कोसारे महाराज )
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