समाज सेवा तिजोरी खोल कर नहींबल्कि दिल खोल कर की जाती हैउसे समाज सेवा का कोई औचित्य नहींजो ज़बरदस्ती बोल कर की जाती है

जो समाज सेवा करता है वो भी संसार में पूजनीय होता है  भले झुकाओ सर ईश्वर अल्लाह ईसा मसीह के दर पर मगर वो समाज सेवक भी जहाँ वंदनीय होता है ना सजदे से, ना दुआ से  ना मंदिर मस्जिद में माथा टेकने से  ईश्वर अल्लाह खुश होते हैं  समाज सेवा करने से
( कोसारे महाराज )

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