पहले यह जान लो की तुम कौन हो, फिर उसके बाद अपने आप को सवारों और विकसित करो। आप कब सही थे यह कोई नहीं याद रखेगा, लेकिन आप कब गलता थे यह हर कोई व्यक्ति याद रखेगा।

हमारे भारत देश में हरेक को  अपनी  मातृभाषा और हिंदी, इंग्लिश तीन भाषाओं का ज्ञान होता ही हैं हमारा भारत देश कितना महान  हैं थोड़ी सरकार के तरफ से और हरेक समाज के तरफ से समाज को सही दिशा दिखाने की जरुरत हैं पहले यह जान लो की तुम कौन हो, फिर उसके बाद अपने आप को सवारों और विकसित करो। कोई गरीब नहीं रह सकता सर्वप्रथम अपने जीवन के शैली को जानना बहुत जरुरी जिसने अपने जीवन शैली को जान लिया उसने सब कुछ जान लिया उसका जीवन  सफल हैं जन्म लेने के बाद मानव जो प्रथम भाषा सीखता है उसे उसकी मातृभाषा कहते हैं। मातृभाषा, किसी भी व्यक्ति की सामाजिक एवं भाषाई पहचान होती है। अपनी मातृभाषा में ही अधिक से अधिक ज्ञान होना चाहिए। विश्व की प्राचीन, समृद्ध और सरल भाषा होने के साथ-साथ हिन्दी हमारी 'राष्ट्रभाषा' भी है। वह दुनियाभर में हमें सम्मान भी दिलाती है। यह भाषा है हमारे सम्मान, स्वाभिमान और गर्व की। हम आपको बता दें कि हिन्दी भाषा विश्व में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली तीसरी भाषा है। हिन्दी का महत्व- धीरे-धीरे हिन्दीभाषा का प्रचलन बढ़ा और इस भाषा ने राष्ट्रभाषा का रूप ले लिया। अब हमारी राष्ट्रभाषा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी बहुत पसंद की जाती है। इसका एक कारण यह है कि हमारी भाषा हमारे देश की संस्कृति और संस्कारों का प्रतिबिंब है। आज विश्व के कोने-कोने से विद्यार्थी हमारी भाषा और संस्कृति को जानने के लिए हमारे देश का रुख कर रहे हैं। एक हिंदुस्तानी को कम से कम अपनी भाषा यानी हिन्दी तो आनी ही चाहिए, साथ ही हमें हिन्दी का सम्मान भी करना सीखना होगा। कश्मीर से कन्याकुमारी तक, साक्षर से निरक्षर तक प्रत्येक वर्ग का व्यक्ति हिन्दी भाषा को आसानी से बोल-समझ लेता है। यही इस भाषा की पहचान भी है कि इसे बोलने और समझने में किसी को कोई परेशानी नहीं होती। पहले के समय में अंग्रेजी का ज्यादा चलन नहीं हुआ करता था, तब यही भाषा भारतवासियों या भारत से बाहर रह रहे हर वर्ग के लिए सम्माननीय होती थी। लेकिन बदलते युग के साथ अंग्रेजी ने भारत की जमीं पर अपने पांव गड़ा लिए हैं। आजकल अंग्रेजी बाजार के चलते दुनियाभर में हिंदी जानने और बोलने वाले को अनपढ़ या एक गंवार के रूप में देखा जाता है या यह कह सकते हैं कि हिन्दी बोलने वालों को लोग तुच्छ नजरिए से देखते हैं। यह कतई सही नहीं है। 
( कोसारे महाराज )

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